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नहीं थे हॉकी खरीदने के पैसे, परमानंद ने पकड़ा हाथ और बना डाला ओलंपिक विजेता… कहानी ललित उपाध्याय की | Paris Olympics 2024 Success story of bronze medalist Lalit Upadhyay no money to buy hockey Parmanand helped stwma

नहीं थे हॉकी खरीदने के पैसे, परमानंद ने पकड़ा हाथ और बना डाला ओलंपिक विजेता... कहानी ललित उपाध्याय की

हॉकी खिलाड़ी ललित उपाध्याय.

भारतीय हॉकी टीम ने 52 साल बाद लगातार दूसरी बार ओलंपिक में कांस्य पदक जीत कर इतिहास रच दिया है. इतिहास रचने वाली हॉकी टीम के एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बनारस के ललित उपाध्याय भी हैं. लेफ्ट इन फॉरवर्ड पोजीशन से खेलने वाले ललित का जीवन संघर्षो से भरा रहा है. उन्हें बचपन से हॉकी खेलने का जुनून था. परिवार की आर्थिक स्थिति यह भी नहीं थी कि वह हॉकी खरीद सकें. इधर, उनके पिता को आस थी स्पोर्ट्स कोटे से उनके बेटे को मिलने वाली कोई भी सरकारी नौकरी की.

इन सब परेशानियों के बीच ललित की किस्मत कुछ और ही तय कर चुकी थी और इसका जरिया बने यूपी कॉलेज के साईं सेंटर में हॉकी कोच परमानंद मिश्रा. सचिन तेंदुलकर को बनाने वाले अगर रमाकांत अचरेकर थे तो ललित उपाध्याय के लिए वही स्थान परमानंद मिश्रा का है. परमानंद नही होते तो शायद आज दुनियां ललित उपाध्याय को नही जानती. उनके पिता सतीश उपाध्याय का यहां तक कहना है कि जब हॉकी स्टिक खरीदने तक के पैसे नहीं थे तब परमानंद ने हर तरह से ललित की मदद की थी.

8 साल की उम्र में शुरू किया हॉकी खेलना

ललित के पिता बताते हैं कि साल 2001 में ललित ने आठ साल की उम्र में अपने भाई अमित के साथ बनारस के यूपी कॉलेज के मैदान में हॉकी खेलने जाना शुरू किया था. उस दौरान कॉलेज के साईं सेंटर में हॉकी कोच परमानंद मिश्रा ने ललित के अंदर के हॉकी खिलाड़ी को पहचान लिया. फिर तो उन्होंने ललित को हॉकी का हर वो स्किल सिखाने में दिन रात एक कर दिया जो एक बेहतरीन खिलाड़ी को आना चाहिए. पिता कहते हैं कि ललित ने भी कोई कोर कसर नही छोड़ी. वह जहां भी गया वहां उसने अपने खेल से लोगों की वाह-वाही ही पाई.

परमानंद मिश्रा ने पहुंचाया शिखर तक

कोच परमानंद मिश्रा ललित की कामयाबी से बेहद खुश हैं. वह बताते हैं कि साल 2008 में तो इंडियन हॉकी टीम के कोच जोकिम कारवाल्हो ने ललित के खेल को देखकर कहा कि ‘ये तो शाहबाज सीनियर की तरह खेलता है’ शाहबाज सीनियर पाकिस्तान के सबसे कामयाब हॉकी खिलाड़ी माने जाते हैं. वह कहते हैं कि कुआलालंपुर और सिंगापुर के बाद महज 16 साल की उम्र में इंडिया कैंप में जब ललित खेलने गया तो लोग आश्चर्य में पड़ गए.

पिता चाहते थे बेटों को नौकरी

पिता सतीश उपाध्याय कहते हैं कि वह अपने दोनों बच्चों ललित और अमित को हॉकी खेलने के लिए इसलिए भेजते थे कि शायद स्पोर्ट्स कोटा से इनकी कोई छोटी मोटी नौकरी लग जाए. आज उनके दोनों बेटे अच्छी नौकरी में हैं. अमित उपाध्याय प्रयागराज के एजी ऑफिस में AAO हैं, जबकि टोक्यो ओलम्पिक में ब्रॉन्ज जीतने के बाद यूपी सरकार में ललित उपाध्याय डीएसपी बन गए हैं. लगातार दो ब्रॉन्ज जीतकर आज ललित ने उनके सपनों को ना सिर्फ पूरा किया है बल्कि अपने गुरू परमानंद मिश्रा का भी सर गर्व से ऊंचा कर दिया है.

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