भीम ने चंबल नदी की रेत से बनाया था शिवलिंग, सावन में डाकू कर लेते थे कब्जा… बीहड़ के मंदिर की कहानी | Kanwar Yatra 2024 Etawah Bhareshwar Mahadev Temple of ravines Bheem made Shivling from Chambal river sand Dacoits capture during Saavan month stwma


प्राचीन भारेश्वर मंदिर.
बीहड़ और चंबल ये नाम सुनते ही दिमाग में डाकुओं की छवि उभर आती है. कभी डाकुओं की शरणस्थली रहे यह इलाके आज शांत हैं. इनका खौंफ इतना की लोग इधर भूले से भी नहीं आते थे, आज यहां भक्तों का सैलाब उमड़ता है. गोलियों की तड़तड़ाहट से गूंजने वाले बीहड़ों में आज बम-बम भोले के नारे गूंजते हैं. 20वीं शताब्दी में यहां से डाकुओं का पूरी तरह सफाया हो गया. यह स्थल सदियों से आस्था के केंद्र बने हुए हैं. आइए सावन के महीने में जाने बीहड़ में चंबल नदी के किनारे मौजूद प्राचीन भारेश्वर मंदिर के बारे में.
उत्तर प्रदेश का जिला इटावा… देश की राजधानी दिल्ली से 340 और प्रदेश की राजधानी लखनऊ से 224 किलोमीटर की दूरी पर मौजूद एक ऐसा शहर जिसने कई विरासतों को संजोया है. इस शहर ने कई तरह से अपनी पहचान बनाई है. कई दशको तक यह क्षेत्र डाकुओं के लिए पनाह बना रहा. इसी जिले की चकरनगर तहसील के गांव भरेह में मौजूद प्राचीन भारेश्वर मंदिर आस्था का बड़ा केंद्र है. यह मंदिर चंबल नदी और बीहड़ के किनारे बना हुआ है.
चंबल की रेत से भीम ने बनाया था शिवलिंग
प्राचीन भारेश्वर मंदिर महाभारतकाल का बताया जाता है. ग्रामीणों के मुताबिक, जिस स्थान पर हजारों साल पुराना मंदिर बना हुआ है. यहां अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने कुछ समय गुजारा था. ग्रामीणों का कहना है कि यहां ठहरने पर भीम ने भगवान शिव की अराधना करने के लिए चंबल नदी की रेत से शिवलिंग बनाकर स्थापित किया था, जिसकी द्रोपदी सहित पांचों पांडवों ने पूजा अर्चना की थी. ये मंदिर 444 फीट की ऊंचाई पर बना हुआ है. मंदिर तक जाने के लिए भक्तों को 108 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं.
सावन के महीने में रहता था डाकुओं का राज
प्राचीन भारेश्वर मंदिर में कई दशक तक डाकूओं का राज रहा. मंदिर पर डाकू पूजा अर्चना किया करते थे. सावन के महीने में डाकू मंदिर में किसी को आने नहीं देते थे. उनकी इस मंदिर से गहरी आस्था रही. उस दौर में बीहड़ में डेरा डाले डकैत निर्भय गुर्जर, रज्जन गुर्जर, अरविंद गुर्जर, रामआसरे फक्कड़, लालाराम, पहलवान सिंह उर्फ सलीम, मान सिंह, लवली पांडे, चंदन और रामवीर मंदिर में पूजा करने जाते थे.
मंदिर के जीर्णोद्वार की रोचक कहानी
मंदिर के जीर्णोद्वार की भी बड़ी रोचक कहानी है. भरेह गांव के रहने वाले लोगों ने बताया कि मुगलकाल में कारोबार का सिलसिला नदियों के रास्ते नावों के जरिए होता था. चंबल नदी से कारोबारी यमुना नदी होते हुए अपने माल को गुजरात-राजस्थान से दिल्ली-आगरा समते कई शहरों में भेजते थे. उन दिनों चंबल-यमुना संगम पर बड़ी-बड़ी भंवर पड़ा करती थी.
ग्रामीण कहते हैं कि राजस्थान का कारोबारी मदनलाल अपनी नाव से माल लेकर गुजर रहा था. तभी उसकी नाव भंवर में फंस गई और डूबने लगी. सामने भारेश्वर महादेव का मंदिर देख उसने प्रार्थना कर वचन दिया कि अगर वह बच गया तो सारा धन मंदिर निर्माण में लगा देगा. उसकी नाव भंवर से निकलकर किनारे आ गई और वह बच गया. बाद में उसने मंदिर में जीर्णोद्वार कराया.