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यहां होली पर पुरुष घरों में रहते हैं कैद, बाहर निकलने पर पीटती हैं महिलाएं; क्या है वजह?

यहां होली पर पुरुष घरों में रहते हैं कैद, बाहर निकलने पर पीटती हैं महिलाएं; क्या है वजह?

गांव में होली खेलती महिलाएं.

बुंदेलखंड में होली का त्यौहार बड़ी घूमघाम से मनाया जाता है. अबीर, गुलाल और रंगों से सरा बोर महिलाओं और पुरुषों की टोलियां के फाग के गानों के सुरों की तान सब का मन मोह लेती हैं. हमीरपुर जिले के कुडौरा गांव की महिलाओं की अनोखी होली सबसे प्रसिद्ध है. यहां होली में पुरुषों का प्रवेश पूरी तरह प्रतिबंधित होता है और होली के दिन पुरुषों को घरों में रहना पड़ता है. यहां महिलाएं गांव के कई रास्तों में लाठी-डंडों के साथ पहरा देती हैं और बची महिलाओं की टोलियां गांव में रंगों के साथ ठिठौली करती दिखाई देती हैं और अगर गांव का कोई पुरुष धोखे से भी महिलाओं के बीच पहुंच जाता है तो उन्हें महिलाओं के कपड़े पहनाकर नचवाया जाता है और विरोध करने पर पिटाई भी हो जाती है.

रंगों से सराबोर सैकड़ों महिलाओं का हुजूम जब होली खेलने निकला है, तब गांव के पुरुष घरों में कैद हो जाते हैं और यह महिलाएं गांव में घूम-घूमकर रंग खेलती हैं. ढोलक की थाप और मजीरों के सुर में तरह-तरह के डांस कर यह महिलाएं होली की हुड़दंग का पूरा लुप्त उठाती हैं. साल भर घूंघट में कैद रहने वाली महिलाएं होली के दिन अपनी हुकूमत चलाती हैं, लेकीन अगर किसी पुरुष ने इन महिलाओं की होली को देखने की कोशिश की या गांव से गुजर रही महिलाओं की टोली के सामने आने की जुर्रत की तो उसकी दुर्दशा होना निश्चित है. अगर कोई पुरुष इनके बीच फंस जाता है तो उसे भी लैंघा चोली पहनाकर जबरन नाचने पर मजबूर किया जाता है. इसी डर के चलते होली के दिन पुरुष घरों में रहते हैं और महिलाएं घरों के बाहर होली के हुड़दंग का मजा लेती हैं.

500 वर्षों से होली के दिन रहता है महिलाओं का कब्जा

जिले के कुंडौरा गांव में महिलाओं की होली का इतिहास 500 साल से पुराना है. गांव की बहुएं और बेटियां भी फाग निकलने के दौरान नृत्य करती हैं, जिसे गांव का पुरुष देख नहीं सकता है. यदि किसी ने देखने की हिम्मत भी की तो उन्हें लट्ठ लेकर गांव से ही खदेड़ दिया जाता है. यहां महिलाओं की फाग निकालने की कोई फोटो या वीडियो नहीं बना सकता है. यदि कोई इस अनूठी परंपरा का चोरी-छिपे फोटो लेते पकड़ा गया तो उस पर तगड़ा जुर्माना बोला जाता है और सारी महिलाएं उसकी कोड़ो से पिटाई भी करती हैं. गांव की बुजुर्ग महिला सीतादेवी की मानें तो कई पीढ़ियों से यह परंपरा चली आ रही है. साल में एक बार होली के दिन ही यहां महिलाओं को घर और घूंघट से बाहर निकलने का मौका मिलता है.

महिलाओं की होली के दौरान पुरुषों को घरों में रहना पड़ता है कैद!

सालों से यहां की परंपरा है कि होली के दूसरे दिन पूरे गांव की महिलाएं और लड़कियां एकजुट होकर होली खेलती हैं, जिसकी टोलियां पूरे गांव में घूमती है. इस दिन पूरे गांव के पुरुषों को घरों में कैद रहना पड़ता है. गांव के मुख्य मार्गों में भी महिलाएं मौजूद रहती है, जो किसी भी पुरुष के गांव में आते ही उसको रंगों से सराबोर करते हुए परेशान करती हैं. कभी-कभी तो महिलाओं की टोलियां पुरुषों से अपने बीच में डांस करवाती हैं. गांव के पूर्व ग्राम प्रधान अवधेश की मानें तो वो अपनी इस प्राचीन परंपरा से खासे उत्साहित रहते हैं और वो कई बार महिलाओं के दंड का शिकार हो चुके हैं.

महिलाएं अपनी ससुराल से होली में शामिल होने को पहुंचती हैं मायके!

बुंदेलखंड में फागुन का महीना शरू होते ही टेसू के फूलों की लालिमा से पूरा वातावरण मदमस्त हो जाता है और गांव-गांव में होरियारे लाठियां चलाकर होली खेलना शरू कर देते हैं तो महिलाएं भी होली गीत गाकर नृत्य करते हुए होरियारों का होसला बढ़ाती रहती हैं, लेकीन इस गांव में इसका उल्टा होता है. यहां महिलाएं तो होली खेल सकती हैं, लेकीन पुरुषों को घरों में कैद रहना पड़ता है. महिलाओं की इस होली की शोरहत बहुत दूर-दूर तक फैली है. इस परंपरा में शामिल होने को गांव की बेटियां भी अपने मायके आ जाती हैं.



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