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यूपी में PDA बनाम DPA, सपा के विनिंग फॉर्मूले के काउंटर के लिए बीजेपी का बैकडोर प्लान? | BJP backdor plan Akhilesh yadav PDA kaushal Kishore DPA yatra UP Politics Assembly elections

यूपी में PDA बनाम DPA, सपा के विनिंग फॉर्मूले के काउंटर के लिए बीजेपी का बैकडोर प्लान?

बीजेपी के कौशल किशोर अब निकालेंगे डीपीए यात्रा

उत्तर प्रदेश की सियासत में 2014 से 2024 तक आते-आते काफी कुछ बदल चुका है. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने 10 साल पहले जिस सोशल इंजीनियरिंग के जरिए यूपी में सियासी जड़े मजबूत करने का काम किया था, उसे समाजवादी पार्टी (SP) प्रमुख अखिलेश यादव पीडीए (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) फॉर्मूले के जरिए सेंधमारी करने में कामयाब रहे. अब पीडीए फॉर्मूले को काउंटर करने के लिए मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री रहे कौशल किशोर ने डीपीए (दलित-पिछड़ा-अगड़ा) यात्रा निकालने जा रहे हैं. इसे बीजेपी का बैकडोर प्लान कहा जा रहा है.

पिछले महीने खत्म हुए लोकसभा चुनाव में ओबीसी और दलित वोट बैंक के खिसकने की कसक ने बीजेपी को भीतर तक हिला कर रख दिया है, क्योंकि पार्टी 62 से घटकर 33 सीट पर सिमट गई है. यूपी को लेकर बीजेपी लगातार राजनीतिक मंथन में जुटी हुई है और अपने खिसके सियासी जनाधार को दोबारा से लाने की प्लानिंग में जुटी है.

वोट बैंक हासिल करने का टास्क

बीजेपी के राष्ट्रीय महामंत्री संगठन बीएल संतोष ने पार्टी नेताओं को दलित और पिछड़े वर्ग के सजातीय मंत्रियों और पदाधिकारियों को अब इस वोट बैंक को वापस पार्टी की तरफ लाने का टास्क दिया है. बीएल संतोष ने पार्टी नेताओं से दलितों और ओबीसी के बीच संवाद और पैठ बढ़ाने के निर्देश दिए हैं.

दूसरी तरफ पूर्व केंद्रीय मंत्री और दलित चेहरा माने जाने वाले कौशल किशोर ने सपा के पीडीए के खिलाफ डीपीए के फॉर्मूले को गांव-गांव तक पहुंचाने का ऐलान किया है. अगले महीने 15 अगस्त के बाद सूबे में डीपीए यात्रा निकालने की कौशल किशोर ने हुंकार भरी है. उन्होंने लखनऊ में पारख महासंघ की तरफ से ‘भारतीय संविधान है और रहेगा’ विषय पर अयोजित कार्यक्रम के दौरान ‘डीपीए’ यात्रा निकालने का ऐलान किया है.

इस दौरान उन्होंने कहा कि एससी, एसटी और हर वर्ग के पिछड़े समाज को सशक्त करने का कार्य तेजी से करना है. इसके लिए सरकार के साथ-साथ जनता को जागरूक होना भी जरूरी है. इसके लिए डीपीए मतलब ‘दलित-पिछड़ा-अगड़ा का संविधान है और संविधान रहेगा’ यात्रा पूरे प्रदेश में निकालेंगे.यात्रा के पहले चरण में लखनऊ, सीतापुर, बाराबंकी, हरदोई, उन्नाव और रायबरेली को शामिल किया जाएगा. यात्रा में लोगों के साथ संवाद और सभाओं का आयोजन कर विपक्ष द्वारा फैलाए गए भ्रम को दूर किया जाएगा.

विपक्ष ने झूठा और भ्रम फैलायाः किशोर

पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि सपा और कांग्रेस समेत इंडिया गंठबंधन ने उत्तर प्रदेश में पीडीए अभियान चलाकर झूठा और भ्रम फैलाया कि मोदी सरकार सत्ता में आने पर संविधान बदल दिया जाएगा. इसके लिए समाज को जागरुक करना जरूरी है, जिसके लिए ही डीपीए यात्रा निकालने का प्लान बनाया है. उन्होंने कहा कि सपा और कांग्रेस ने पिछड़ा दलित अल्पसंख्यक लोगों को एक होने के लिए कहा, लेकिन अगड़े समाज को भूल गए जबकि अगड़े समाज में भी बहुत गरीब तबके के लोग हैं जिनको मुख्य धारा में लाना जरूरी है. इसीलिए डीपीए का नाम दिया है. इस यात्रा की शुरुआत लखनऊ, सीतापुर, बाराबंकी, हरदोई, उन्नाव, रायबरेली इन 6 जिलों से की जाएगी.

सपा के पीडीए फॉर्मूले को काउंटर करने के लिए भले ही मोदी सरकार में मंत्री रह चुके कौशल किशोर अपने स्तर पर यात्रा निकाल रहे हैं, लेकिन जिस तरह दलित और पिछड़े वर्ग को बीजेपी के पक्ष में लामबंद रना चाहते हैं, उसके चलते ही माना जा रहा है कि कहीं न कहीं बीजेपी का बैकडोर समर्थन हासिल है. 2024 के लोकसभा चुनाव में विपक्ष ने संविधान बदलने और आरक्षण खत्म करने का नैरेटिव गांव-गांव तक फैलाया, जिससे यह नाराजगी और बढ़ गई.

सूबे में लगातार घटती जा रही बीजेपी

बीजेपी के कार्यकर्ताओं के पास इसकी कोई काट नहीं थी. इसके चलते बीजेपी को अपनी 29 सीटें गंवानी पड़ गई, जिस यूपी में 2014 में 71 और 2019 में 62 सीटें जीती थी, वहां 2024 के चुनाव में सिर्फ 33 सीटें उसे मिलीं.

यूपी में कई लोकसभा सीटों पर तो यादव और दलित एक साथ आ गए और सपा की ओर खिसक गए. इसके चलते सुरक्षित सीटों पर भी बीजेपी को वोट नहीं मिले. यूपी में लोकसभा की 17 सुरक्षित सीटों पर 10 साल पहले 2014 में बीजेपी को सभी सीटों पर जीत मिली थी. 2019 में 14 सीटें ही बीजेपी के पास रह गईं. इस बार के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को महज 8 सीटों पर संतोष करना पड़ा जबकि सपा को 7, कांग्रेस को एक और नगीना से आजाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर भी चुनाव जीते. इस तरह से बीजेपी के लिए सपा का पीडीए फॉर्मूला चुनाव में महंगा पड़ गया.

सपा के पीडीए फॉर्मूले के चलते ही बीजेपी के कौशल किशोर को मोहनलालगंज लोकसभा सीट से 10 साल के बाद हार का सामना करना पड़ा है. वह 2014 और 2019 में लगातार जीत दर्ज कर संसद पहुंचे थे, लेकिन इस बार जीत की हैट्रिक नहीं लगा सके. सपा ने 2027 के चुनाव में भी पीडीए फॉर्मूले पर ही लड़ने का प्लान बनाया है, जिस पर काम शुरू कर दिया है.

PDA फॉर्मूले को काउंटर करने की रणनीति

सपा अब पीडीए के फॉर्मूले पर आगे बढ़ेगी. ऐसे में उनकी निगाहें अनुसूचित जाति के मतदाताओं पर टिकी हैं. लोकसभा चुनाव के बाद से ही सपा ने यूपी में बीजेपी के सामने नई चुनौती खड़ी कर दी है. इसीलिए सपा के पीडीए फॉर्मूले को हर हाल में काउंटर करने की रणनीति बनाई है, जिसे कई स्तर से मुकाबला करने का प्लान बनाया है.

सपा इस बात को मानती है कि ब्राह्मण, राजपूत और वैश्य वर्ग पर अभी बीजेपी की पकड़ मजबूत बनी हुई है, जिनके फिलहाल साथ आने की अभी कोई उम्मीद नहीं है. इसीलिए पूरा फोकस दलित-पिछड़े और अल्पसंख्यक वोटों पर कर रखा है. यूं तो सपा सभी वर्गों में प्रयास करेगी, लेकिन खास तौर पर निगाहें दलितों पर है.

बीजेपी ने भी दलित और पिछड़े वर्ग को फिर से जोड़ने के लिए अपनी एक्सरसाइज शुरू कर दी है. इसके लिए फ्रंट पर बीजेपी के नेताओं को लगाया गया है तो दूसरे मोर्चे पर बैकडोर से इनको साधने का प्लान बनाया गया है. पूर्व केंद्रीय मंत्री कौशल किशोर ने सामाजिक संगठन पारख के सहारे डीपीए यात्रा निकालकर सियासी माहौल बनाने की स्ट्रैटेजी अपनाई है. ऐसे में देखना है कि क्या बीजेपी अपने खिसके जनाधार का दोबारा से विश्वास हासिल कर पाएगी?

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