रुस-यूक्रेन युद्ध में भारतीय युवाओं का सौदा, सैनिक बनने के लिए कितने में लग रही बोली?


रूसी सेना की ओर से यूक्रेन बॉर्डर पर तैनात आजमगढ़ के राकेश यादव
करीब तीन-चार साल से जारी रूस-यूक्रेन युद्ध की आग में भारतीय युवाओं को झोंका जा रहा है. एजेंटों के जरिए भारत के युवाओं को गार्ड की नौकरी दिलाने के बहाने रूस पहुंचाया जा रहा है और वहां पर 15 दिन की ट्रेनिंग देकर लड़ाई के मैदान में उतार दिया जा रहा है. भारतीय विदेश मंत्रालय की मदद से भारत लौटे आजमगढ़ के मेहनगर में चकला गांव निवासी युवक राकेश यादव ने यह सनसनीखेज खुलासा किया है. राकेश ने दावा किया है कि उसके ही जैसे हजारों भारतीय युवक अभी भी रूस की ओर से युद्ध के मैदान में डटे हैं. इसमें बड़ी संख्या में लोगों की मौत भी हुई है.
राकेश यादव ने TV9 भारतवर्ष से बातचीत में बताया कि रूस की सेना भारत की तमाम प्लेसमेंट एजेंसियों की संपर्क में है. ये प्लेसमेंट एजेंसियां भारत में बेरोजगार युवकों की तलाश करती हैं और उन्हें रूस के एयरपोर्ट, मेट्रो स्टेशन पर रेलवे स्टेशन पर गार्ड की नौकरी दिलाने का झांसा देकर रूस भेजती हैं. इसके एवज में उन्हें सात से आठ लाख रुपये मिलते हैं. इसके बाद रूस में भारतीय युवाओं को 15 दिन की ट्रेनिंग देकर यूक्रेन बॉर्डर पर भेजा जाता है.
युद्ध के दौरान ड्रोन से हुआ हमला
राकेश यादव के मुताबिक इस दौरान रूस की सेना से जो भी पैसा मिलता है, भारतीय युवाओं के खाते में आता है, दिल्ली में बैठे एजेंट हड़प लेते हैं. उसने बताया कि पिछले दिनों रूस यूक्रेन बॉर्डर पर तैनाती के दौरान उसके ऊपर ड्रोन से हमला हुआ था. इसमें वह बुरी तरह से जख्मी हो गया तो रूस की सेना ने अस्पताल में भर्ती कराया था. तीन महीने तक वह अस्पताल में रहा. इस दौरान रूस की सेना ने मदद के रूप में उसे 30 लाख रुपये दिए थे.
एजेंटों ने हड़पे 30 लाख की मदद राशि
चूंकि उसके सभी दस्तावेज और बैंक का एटीएम एजेंटों के पास था, इसलिए उन लोगों ने यह 30 लाख रुपये भी हड़प लिए. राकेश यादव के मुताबिक उसके परिवार वालों ने जानकारी मिलने पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री, देश के प्रधानमंत्री और विदेश मंत्रालय से गुहार की थी. इसके बाद पंजाब से सांसद ने हस्तक्षेप किया. इसके बाद कुछ लोगों की वतन वापसी हो सकी है. हालांकि अभी भी रूस की सेना में हजारों की संख्या में भारतीय युवा है और वह युद्ध लड़ने के लिए मजबूर हैं.
ऐसे हो रहा सौदा
रूस से लौटकर आजमगढ़ पहुंचे राकेश यादव ने बताया कि उसे भी रूस के एयरपोर्ट पर गार्ड की नौकरी का झांसा दिया गया था. इसके बाद दिल्ली के एजेंटों ने उसे रूस भेज दिया. वहां पर उससे एक एग्रीमेंट साइन कराया गया. इसमें लिखा गया था कि 15 दिन की ट्रेनिंग के बाद तैनाती होगी. रूसी सेना ने उसे ट्रेनिंग तो दी, लेकिन एयरपोर्ट पर तैनाती के बजाय उसे रूस यूक्रेन बॉर्डर पर भेज दिया गया. वहां पहुंचने पर पता चला कि यहां वह अकेला भारतीय नहीं है, बल्कि उसके जैसे हजारों भारतीय बेरोजगार रूसी सिपाही बनकर जंग लड़ रहे हैं.
सात से आठ लाख में सौदा
राकेश ने बताया कि भारत से रूस जाने वाले हरेक व्यक्ति को बैंक के खाते में 7 से आठ लाख रूपये मिलते हैं. चूंकि दिल्ली में बैठे एजेंट यहीं पर उसके सभी दस्तावेज और बैंक एटीएम जब्त कर लेते हैं. इसलिए खाते में पैसा आते ही वह इसे हड़प जाते हैं. यही नहीं, जो लोग वहां युद्ध में घायल होते हैं या मारे जाते हैं, उन्हें भी रूसी सेना पैसे देती है. यह पैसा भी दिल्ली में बैठे एजेंट हड़प लेते हैं. राकेश के मुताबिक उसके पास इस सौदे बाजी से संबंधित सभी दस्तावेज मौजूद हैं. उसने भारत सरकार से देश के युवाओं को बचाने का आग्रह किया है.