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सपा सांसद पर हुए हमले के बाद एक्शन मोड में पार्टी, ईद के बाद पूरे प्रदेश में निकालेगी पीडीए सम्मान आंदोलन

सपा सांसद पर हुए हमले के बाद एक्शन मोड में पार्टी, ईद के बाद पूरे प्रदेश में निकालेगी पीडीए सम्मान आंदोलन

अखिलेश यादव.

“अखिलेश जानते हैं कि योगी जी के रहते ठाकुर सपा के साथ नहीं जुड़ेंगे लेकिन दलित समाज अगर उनके साथ आता है तो मुस्लिम-दलित-यादव गठजोड़ के सहारे गांव स्तर पर बीजेपी को घेरा जा सकता है “—– राजेंद्र कुमार, वरिष्ठ पत्रकार.

ये ऐतिहासिक तथ्य भी बेहद अजीब है कि राणा सांगा और बाबर की लड़ाई आगरा के नजदीक खानवा में मार्च 1527 में लड़ी गई थी. अब करीब 500 साल बाद राणा सांगा और बाबर के नाम पर एक नई राजनीतिक लड़ाई शुरू होने जा रही है और इस लड़ाई के केंद्र में भी आगरा ही है.

सपा सांसद के आवास पर हमला

राणा सांगा पर विवादित टिप्पणी करने के बाद सपा के राज्य सभा सांसद रामजी लाल सुमन बीजेपी, विहिप जैसे संगठन के निशाने पर आ गए थे. करणी सेना ने उनके आगरा स्थित आवास पर जमकर तोड़फोड़ की. पहले तो बयान को लेकर सपा और रामजी लाल सुमन बैक फुट पर दिखे और राणा सांगा को राष्ट्र का महापुरुष बताया, लेकिन अब इस मामले में फिर से नया ट्विस्ट आया है.

रामजी लाल सुमन ने अपने बयान को दोहराते हुए कहा है कि वो अपने बयान पर अभी भी कायम हैं. सपा भी अपने सांसद रामजी लाल सुमन के साथ मजबूती से खड़ी दिखाई दे रही है और करणी सेना समेत उन तमाम संस्थाओं और संगठनों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है.

ईद के बाद सपा करेगी आंदोलन

रामगोपाल यादव ने ऐलान किया है कि ईद के बाद सपा प्रदेश व्यापी आंदोलन करने जा रही है. सपा के दो बड़े नेता रामगोपाल यादव और शिवपाल यादव ने आगरे जा कर रामजी लाल सुमन के घर पर उनसे मिलकर हाल चाल लिया और प्रदेश व्यापी आंदोलन शुरू करने का ऐलान किया. अखिलेश यादव ने इस पूरी घटना को सीएम के इशारे पर अंजाम देने जैसा संगीन आरोप भी लगा दिया.

अखिलेश का पीडीए पर फोकस

अखिलेश यादव ने इस पूरे घटना क्रम को ठाकुर बनाम दलित अस्मिता के संघर्ष का राजनीतिक रूप देने की हर संभव कोशिश की है. वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र कुमार कहते हैं कि इतिहास का ठीक ठीक विश्लेषण करने की कोशिश नहीं हो रही है. औरंगजेब के बहाने गोलबंदी की कोशिश ज़्यादा हो रही है. इतिहास के उन तथ्यों पर यदि कोई बात करें जो किसी भी पक्ष को सूट न करता हो तो मारपीट की स्थिति बन जाती है. ये पूरा मामला ही राजनीतिक बन गया है. अखिलेश यादव जानते हैं कि योगी जी के रहते ठाकुर वोट कभी सपा को नहीं मिल सकता लेकिन यदि दलित सपा से जुड़ते हैं तो दलित-मुस्लिम और यादव गठजोड़ गांव स्तर तक बीजेपी को घेरने में कारगर हो सकता है. लोकसभा चुनाव में सपा ने पीडीए का नारा देकर ये करिश्मा कर के भी दिखाया है.

क्या है अखिलेश यादव का स्टैंड

समाजवादी पार्टी को लंबे समय तक कवर करने वाले वरिष्ठ पत्रकार मनमोहन कहते हैं कि जिस तरीके से सपा प्रमुख रामजी लाल सुमन के साथ खड़े नज़र आएं और राम गोपाल यादव और शिवपाल यादव को हालचाल लेने के लिए उनके घर भेजा उससे साफ हो जाता है कि अखिलेश यादव का स्टैंड बिल्कुल क्लियर है. सपा इस मुद्दे पर अपने दलित सांसद का हर हाल में साथ देगी.

लोकसभा चुनाव परिणाम के लिहाज से दलित वोट बैंक को आधार बनाकर अगर सपा की रणनीति को समझने की कोशिश करें तो एक ज़्यादा स्पष्ट तस्वीर उभरती है. सपा ने लोकसभा चुनाव में जो पीडीए फार्मूला की रणनीति बनाई थी उसी का ये असर था कि दलित वोटरों का एक बड़ा हिस्सा सपा के साथ गया और उसी की बदौलत यूपी में सपा को 37 सीटें आईं.

क्या है दलित वोटबैंक का समीकरण

दलित वोट बैंक दो हिस्सों में बंटा है जाटव और गैर जाटव. सीएसडीएस की रिपोर्ट के आधार पर लोकसभा चुनाव में जाटव वोट बैंक का 25% हिस्सा सपा -कांग्रेस गठबंधन को मिला था जबकि 24% जाटव वोट बीजेपी को मिला था. बसपा को करीब 44% जाटव वोट मिले थे.
गैर जाटव दलित वोट का 56% वोट सपा को जबकि 29% गैर जाटव वोट बीजेपी को मिला था. बसपा के खाते में 15% गैर जाटव वोट गए थे. रामजी लाल सुमन जाटव समाज से आते हैं और सपा यूपी के सामाजिक-राजनैतिक परिवेश को बहुत अच्छे तरीके से समझती है तभी अखिलेश यादव ने प्रदेश स्तर पर आंदोलन चलाने का फ़ैसला लिया है.

दलित – यादव और मुस्लिम गठजोड़ का यूपी में करीब 50% वोट बैंक पर अधिकार है. यानी कि इस गठजोड़ के सहारे बीजेपी को घेरना सपा के लिए आसान होगा. दलित समाज बसपा से निराश हो चुका है और चंद्रशेखर में उसको नेतृत्व की संभावना नजर नही आ रही है. दलित समाज नई लीडरशिप को खोज रही है तो सपा के मुखिया दलित वोटबैंक की ओर बढ़ रहे हैं.
राणा सांगा बनाम बाबर की लड़ाई अब यूपी में ठाकुर बनाम दलित के जातीय अस्मिता के संघर्ष के रूप में तेजी से बदल रही है.



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