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मैसूर की शिला, मूर्तिकार का स्पर्श… कर्नाटक के ‘योगीराज’ ने बाल राम को ऐसे तराशा | ayodhya ram mandir lord ram murti made from rock brough from mysore stwss

मैसूर की शिला, मूर्तिकार का स्पर्श... कर्नाटक के 'योगीराज' ने बाल राम को ऐसे तराशा

स्थान जहां कृष्ण शिला पाई गई थी

पूरे देशभर में प्राण प्रतिष्ठा समारोह के लिए तैयारियां की जा रही हैं. अयोध्या में बन रहे भव्य राम मंदिर का उद्घाटन 22 जनवरी को होना है. तैयारियों का जायजा के लेने के लिए सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक अयोध्या पहुंच रहे हैं. प्राण प्रतिष्ठा आयोजन के लिए देशभर के विभिन्न इलाकों से श्रद्धालु अलग-अलग चीजें अर्पित कर रहे हैं. बात करें अगर प्रभु राम की मुख्य प्रतिमा की तो उसे मैसूर के मूर्तिकार अरुण योगीराज ने तराशा है.

जिस पत्थर से भगवान राम के बाल स्वरूप की मूर्ति तैयार की जा रही है वह भी मैसूर का है. अयोध्या में बाला राम की मूर्ति के लिए मैसूर के पत्थर का इस्तेमाल किया गया था. सवाल खड़ा होता है कि इस चट्टान की पहचान कैसे हुई? इस पत्थर का उपयोग क्यों किया गया? आइए जानते हैं.

क्या है इस पत्थर की कहानी?

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मूर्तियां तराशने के लिए कृष्ण शिला पसंदीदा पत्थर माना जाता है. यह कृष्ण रत्न मैसूर तालुक के हारोहल्ली गांव के राम दास के खेत में पाया गया था. इस मामले की जानकारी होने पर सुरेंद्र विश्वकर्मा ने राम दास की जमीन का पट्टा लेने वाले गुज्जेगौड़ानापुर के श्रीनिवास से संपर्क किया. बाद में मनाया बडिगर ने पत्थर का परीक्षण किया और बाद में अयोध्या के गुरु की उपस्थिति में भूमि में मिले पत्थर को मूर्ति तराशने के लिए समर्पित कर दिया गया.

10 फीट गहरी खुदाई से निकली थी चट्टान

जैसे ही शुभ कार्य शुरू होते हैं, एक के बाद एक, समय और परिस्थितियों के साथ, सभी कार्य उसके होते चले जाते हैं. कहा जाता है कि अयोध्या में बन रहे राम मंदिर में रामलला की मूर्ति स्थापित की गई थी. राम दास की जमीन में 10 फीट गहरी खुदाई कर चट्टान निकाली गई थी. राम की मूर्ति के लिए 19 टन वजनी और करीब 9 फीट 8 इंच लंबे पत्थर को निकालकर अयोध्या भेजा गया है.

माता सीता, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न की भी मूर्तियां

राम के साथ-साथ सीता, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न की मूर्तियां भी यहां से भेजी गई हैं. जैसा कि अयोध्या गुरुओं ने निर्धारित किया था कि पत्थर को बाहर नहीं भेजा जाना चाहिए और प्रचारित नहीं किया जाना चाहिए. पत्थर को हटाने के बाद, मिट्टी को ढक दिया गया और भूमि को समतल कर दिया गया.

खबर है कि अयोध्या के गुरु राम मंदिर के लिए पत्थर के साथ-साथ मिट्टी भी ले गए हैं. करीब 40 टन पत्थर अयोध्या भेजा गया है. पत्थर भेजते समय ग्रामीणों ने पूजा-अर्चना की और श्रद्धा व सम्मान के साथ पत्थर भेजा। मैसूर के लोगों को रामलला की मूर्ति को छूने का मौका मिला.

मूर्तिकार अरुण योगीराज से TV9 की खास बातचीत

रामलला की मूर्ति की नक्काशी मैसूर के मूर्तिकार अरुण योगीराज ने की है. एमबीए ग्रेजुएट अरुण योगीराज ने अपनी कॉर्पोरेट की नौकरी छोड़कर मूर्तिकला करियर को चुना था. मैसूर के अरुण के साथ बेंगलुरु के जीएल भट्ट और राजस्थान के सत्यनारायण पांडे ने भी राम लला की यह मूर्ति बनाई है. अरुण योगीराज ने टीवी9 से खास बातचीत की और मूर्ति के बारे में बताया.

रामलला की पत्थर की मूर्ति क्या है?

उन्होंने बताया कि रामलला के नाम में लल्ला का अर्थ है बच्चा, यानी की भगवान राम की बचपन की मूर्ति. राम जी की मूर्ति इस अवधारणा पर आधारित है कि जब राम बालक थे तो वे कैसे थे. 51 इंच की मूर्ति प्रभु राम के बचपन के स्वभाव, उनकी मासूमियत और शरारती पन को झलकाती है.

योगीराज जी ने आगे बताया कि शिल्पकारी से पहले वह कई स्कूलों में गए और 3 से 5 साल के बच्चों का निरीक्षण किया. उसके बाद दक्षिण भारतीय शैली में आभूषणों के साथ राम की मूर्ति बनाई. बता दे कि मूर्तिकार योगीराज जी ने छह महीने तक काम किया और हर दिन वह 12 घंटे काम करते थे.

“प्रभु आप ही अपनी मूर्ति बनाइए”

उन्होंने बताया कि भगवान राम की मूर्ति बनाने के लिए हमें सीधे पत्थरों पर काम करना था. अगर मेरे मन में होता कि मैं रामलला की मूर्ति बनाऊंगा तो मैं तनाव में आ जाता और गलतियां हो सकती थीं. उन्होंने आगे बताया कि “मैं पत्थर के सामने बैठ गया और भगवान राम से कहता रहा कि प्रभु आप ही अपनी मूर्ति बनाइए.”

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