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Allahabad High Court Says Not Allowing Partner For Sexual Intercourse For Long Time Equal To Mental Cruelty

Allahabad High Court News: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक दंपत्ति से जुड़े मामले की सुनवाई करते हुए बड़ी टिप्पणी की है. कोर्ट ने लंबे समय तक जीवनसाथी को शारीरिक संबंध न बनाने देने को मानसिक क्रूरता बताया है. कोर्ट ने कहा, “अगर कोई पति या पत्नी अपने साथी को बिना किसी कारण के लंबे समय तक यौन संबंध बनाने की अनुमति नहीं देता है, तो यह मानसिक क्रूरता के बराबर है. 

मानसिक क्रूरता के आधार पर एक दंपत्ति की शादी के रिश्ते को खत्म करते हुए जस्टिस सुनीत कुमार और राजेंद्र कुमार-4 की खंडपीठ ने यह टिप्पणी की. पीठ ने माना, “बिना पर्याप्त कारण के अपने साथी को लंबे समय तक यौन संबंध बनाने की अनुमति न देना, अपने आप में ऐसे जीवनसाथी के लिए मानसिक क्रूरता की श्रेणी में आता है.” 

वैवाहित संबध पर क्या बोली कोर्ट?

फैसला सुनाते हुए पीठ ने कहा, “ऐसी कोई स्वीकार्य वजह नहीं है जिसमें यह माना जाए कि एक पति या पत्नी को पत्नी के साथ जीवन फिर से शुरू करने के लिए मजबूर किया जा सकता है. दंपत्ति को हमेशा के लिए शादी से जोड़े रखने की कोशिश करने से कुछ भी नहीं मिलता है, जो वास्तव में खत्म हो गया है.”

क्या है पूरा मामला?

कोर्ट एक पारिवारिक अदालत के आदेश के खिलाफ एक पति की तरफ से दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 के तहत उसकी तलाक की याचिका खारिज कर दिया था. उसने आरोप लगाया था कि शादी के बाद उसकी पत्नी का उसके लिए व्यवहार काफी बदल गया और उसने उसके साथ रहने से इनकार कर दिया. पत्नी अपनी मर्जी से कुछ समय बाद अपने माता-पिता के घर में अलग रहने लगी. 

पंचायत की तरफ से हुआ था तलाक 

शादी के छह महीने बाद, जब पति ने उसे फिर से ससुराल वापस आने के लिए मनाने की कोशिश की तो उसने मना कर दिया. जुलाई 1994 में गांव में ही आयोजित एक पंचायत के माध्यम से पति की तरफ से पत्नी को 22 हजार का स्थायी गुजारा भत्ता देने के बाद, दंपति का आपसी तलाक हो गया. पत्नी के फिर से शादी करने के बाद पति ने मानसिक क्रूरता और लंबे समय तक परेशान रहने के आधार पर फैमिली कोर्ट से तलाक की डिक्री मांगी. 

हाई कोर्ट ने दी तलाक की डिक्री

फैमिली कोर्ट ने मामले को एकतरफा आगे बढ़ाया और पति की याचिका को खारिज कर दिया, यह देखते हुए कि तलाक देने के लिए क्रूरता का कोई आधार नहीं था. वहीं, अब फैक्ट्स को देखने के बाद हाई कोर्ट ने टिप्पणी की कि फैमिली कोर्ट ने पति के मामले को खारिज करते हुए हाइपर-टेक्निकल अप्रोच अपनाई थी. हाई कोर्ट ने पूरा मामला सुनने के बाद फैमिली कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया और अपीलकर्ता को तलाक की डिक्री दे दी. 

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