उत्तर प्रदेशभारत

UP:खानकाहे बरकातिया पर होती है पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब की निशानियों की जियारत, आते हैं लाखों जायरीन | marehara shareef Khankahe Barkatiya Pilgrimage relics Prophet Hazrat Mohammad Sahib barkati qadari-stwma

UP:खानकाहे बरकातिया पर होती है पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब की निशानियों की जियारत, आते हैं लाखों जायरीन

खानकाहे बरकातिया पर पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब की पवित्र निशानियों की जियारत कराई जाती है

उत्तर प्रदेश में ब्रज के आखिरी छोर पर गंगा और यमुना के बीच बसा छोटा सा कस्बा मारहरा धार्मिक आस्था का केंद्र है. केंद्र इसलिए क्योंकि यहां कादरी सिलसिले की दरगाह शरीफ खानकाहे बरकातिया है, और इसी खानकाह से जुड़ी है मजहब-ए-इस्लाम के पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब की निशानियां. यह खानकाह गंगा-जमीनी तहजीब की भी निशानी है. यहां के बुजुर्गो ने सूफीवाद के जरिए प्रेम और शांति का पैगाम दिया है, और यह सिलसिला आज भी जारी है. यही, खूबी है कि यहां के बुजुर्गो के आस्थाने पर हर मजहब के अकीदतमंद अपनी मुरादों को लेकर आते हैं.

उत्तर प्रदेश के एटा जिले के मारहरा में स्थित सूफी बुजुर्गो की दरगाह शरीफ खानकाहे बरकातिया देश ही नहीं बल्कि पश्चिम एशिया में अपनी अलग पहचान रखती है. खाड़ी देश इराक से इस खानकाह का रूहानी रिश्ता है. इराक के बगदाद शरीफ में स्थित हजरत शेख अब्दुल कादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैहा से खानकाहे बरकातिया के बुजुर्गो को खिलाफत मिली है.

Urse Qasami

पवित्र निशानियों की लाखों जायरीन जियारत करते हैं

पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब की पवित्र निशानियां

दरगाह शरीफ पर लगने वाले उर्स में कई देशों से जायरीन आते हैं. उर्स में आने वाले जायरीनों को यहां हजरत मोहम्मद साहब की पवित्र निशानियों की जियारत कराई जाती है. इन पलों को देख जायरीन खुदा की बारगाह में हाथ उठाकर दुआएं करने लगते हैं.जायरीनों को हजरत मोहम्मद साहब के मुए मुबारक (दाढ़ी शरीफ का बाल), कदम शरीफ का नक्श (पत्थर पर पैर का निशान) और आपके जूता मुबारक की जियारत कराई जाती है. साथी ही मौला अली, हजरत इमाम हुसैन, हजरत इमाम हसन और हुजुर गौसे पाक की पवित्र निशानियों की भी जियारत कराई जाती है.

दरगाह शरीफ खानकाहे बरकतिया

दरगाह शरीफ खानकाहे बरकतिया

17वीं सदी में खाड़ी देशों से आईं पवित्र निशानियां

यह पवित्र निशानियां सदियों पहले खाड़ी के देशों से होती हुई करीब 17वीं सदी में मारहरा की दरगाह शरीफ खानकाहे बरकतिया के बुजुर्गो तक पहुंची. खानकाह के बुजुर्ग इन पवित्र निशानियों को वक्त दर वक्त बड़ी ही हिफाजत से रखते आ रहे हैं. इन पवित्र निशानियों को तबर्रुकात कहा जाता है. इनकी जियारत के लिए लाखो जायरीनों का सैलाब दरगाह शरीफ पर उमड़ता है.दरगाह शरीफ के सज्जादानशीन सैयद नजीब हैदर नूरी बताते हैं, ‘सदियों से दरगाह शरीफ में पैगम्बर हजरत मोहम्मद साहब की निशानियों के तौर पर हुजूर पाक की दाढ़ी के बाल(मूए मुबारक), हुजूर के कदम शरीफ और हुजूर का जूता मुबारक मौजूद हैं.’ वह बताते हैं कि यह सभी पाक तबर्रुकात 17 वीं सदी में खानकाह शरीफ के बुजुर्ग हजरत सैय्यद शाह हमजा ऐनी रहमतुल्लाह अलैह तक पहुंचे. यह पाक निशानियां बहुत ही हिफाजत और अहतराम के साथ रखी हुई हैं, और इनकी जियारत उर्स के मौके पर कराई जाती है.

Urse Marehara

पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब की पवित्र निशानी

मौला अली का जुब्बा, हजरत इमाम हुसैन की दाढ़ी का बाल मुबारक

दरगाह शरीफ पर इन पवित्र निशानियों के अलावा हजरत इमाम हसन और हजरत इमाम हुसैन शहीदे करबला की दाढ़ी के बाल मुबारक भी हैं. इन्हे मेरठ के नवाब रूहुल्लाह खान ने हुजूर साहिबुल बरकात को दिए थे. हजरत अली(र.अ.) की दाढ़ी का बाल मुबारक को यहां के बुजुर्ग हजरत अच्छे मियां की नानी ने उन्हें तोहफे में दिए थे. हजरत मौला अली का जुब्बा मुबारक ईरान से होता हुआ इराक, और यहां से भारत के अजमेर शरीफ स्थित ख्वाजा गरीब नवाज दरगाह शरीफ तक पहुंचा. यहां से दिल्ली हजरत निजामुद्दीन औलिया से होता हुआ यह मारहरा की खानकाहे बरकाती पर पहुंचा.

Syed Najeeb Noori

दुआएं मांगते सज्जादानशीन सैयद नजीब हैदर नूरी

संगे खैबरी (करामती पत्थर)

संगे खैबरी मौला अली की करामात की निशानी है. हयाते महाइखे मारहरा किताब में डॉक्टर अहमद मुजतबा सिद्दीकी लिखते हैं कि मौला अली को किसी मैदान में घोड़ा बांधने की जरूरत पड़ी. घोड़ा बांधने के लिए कोई रस्सी न थी. आपने वहां एक पत्थर से रेशम निकालकर घोड़े को बांध दिया था. यह संगे खैबरी उसी पत्थर का टुकड़ा है.साथ दरगाह शरीफ पर हजरत गौसे पाक की दाढ़ी का बाल मुबारक और उनकी तसवीह के दानेभी मौजूद हैं.

यह भी पढ़ें: इस दरगाह की चौखट पर दिखते हैं हर धर्म के निशान, दिवाली पर मनता है जश्न

Show More

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button