उत्तर प्रदेशभारत

Mathura Lok sabha Seat: कृष्ण की धरती मथुरा में किसकी धुन का चलेगा जादू, ड्रीम गर्ल लगा पाएंगी हैट्रिक? | Mathura Lok Sabha constituency Profile BJP opposition alliance india BSP elections 2024

भगवान कृष्ण की जन्मभूमि मथुरा को भी राजनीतिक रूप से अहम माना जाता है. धर्म नगरी होने की वजह से मथुरा जिले पर सभी की नजर रहती है. लोकसभा चुनाव को लेकर उत्तर प्रदेश में हलचल बनी हुई है, और सभी प्रमुख दल चुनाव को लेकर अपनी तैयारियों में जुट गए हैं. ब्रज क्षेत्र में पड़ने वाली मथुरा बेहद खास संसदीय सीट है क्योंकि यहां से मशहूर फिल्म अभिनेत्री और नृत्यांगना हेमा मालिनी सांसद हैं. हेमा मालिनी की नजर लगातार जीत की हैट्रिक लगाने पर है.

मथुरा संग्रहालय में पुरातात्विक सर्वेक्षण के अनुसार, शहर को लेकर सबसे पुराना जिक्र महाकाव्य रामायण में मिलता है. महाकाव्य में, इक्ष्वाकु राजकुमार शत्रुघना ने लवणसुरा नाम के राक्षस को मार डाला और यहां की भूमि का दावा किया. फिर यह जगह मधुवन के रूप में जाना जाने लगा क्योंकि यह घना जंगली क्षेत्र हुआ करता था. ऐसे में मधुपुरा बाद में में मथुरा शहर हो गया और आज भी इसे इसी नाम से जाना जाता है. मथुरा जिले में 5 विधानसभा सीटें आती हैं जिसमें छाता, मांट, गोवर्धन, मथुरा और बलदेव सीटें शामिल हैं. 2022 में प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव में इन सभी सीटों पर भारतीय जनता पार्टी का कब्जा हो गया.

2019 का चुनाव, हेमा को मिले6.71 लाख वोट

2019 के संसदीय चुनाव को देखें तो यहां मथुरा लोकसभा सीट पर बीजेपी और साझा उम्मीदवार के बीच मुकबला रहा. बीजेपी ने यहां से एक बार फिर 2014 की सांसद हेमा मालिनी को मैदान में उतारा तो उनके सामने समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के साथ चुनावी गठबंधन की वजह से यहां से राष्ट्रीय लोकदल (RLD) के प्रत्याशी कुंवर नरेंद्र सिंह को मौका मिला. हालांकि चुनाव एकतरफा ही रहा. हेमा को चुनाव में 671,293 वोट मिले तो नरेंद्र सिंह के खाते में 377,822 वोट आए.

दोनों के बीच मुकाबले में कांग्रेस की स्थिति बेहद खराब रही क्योंकि उसके उम्मीदवार महेश पाठक को 50 हजार वोट भी नसीब नहीं हुए. वह महज 28,084 वोट पर सिमट कर रह गए. हेमा ने एक बार फिर शानदार प्रदर्शन करते हुए 293,471 मतों के अंतर से जीत हासिल की. अखिलेश से चाचा शिवपाल सिंह यादव की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी जगवीर सिंह चुनाव में सबसे नीचे रहे और उनके खाते में महज 470 वोट ही आए. चुनाव में मथुरा सीट पर कुल 17,48,275 वोटर्स थे जिसमें पुरुष वोटर्स की संख्या 9,55,064 थी महिला वोटर्स की संख्या 7,92,986 थी. इसमें कुल 11,02,731 (63.4%) वोटर्स ने वोट डाले. चुनाव में नोटा के खाते में 5,800 वोट गए.

क्या रहा है मथुरा सीट का इतिहास

मथुरा संसदीय सीट के राजनीतिक इतिहास की बात करें तो यहां पर बीजेपी का कब्जा बरकरार है. 1990 के बाद की राजनीति में राम मंदिर आंदोलन की वजह से बीजेपी के लिए यह सीट गढ़ के रूप में बदलती चली गई. यहां पर संसदीय परंपरा की शुरुआत 1952 के चुनाव से होती है और तब राजा गिरराज सरण सिंह बतौर निर्दलीय ही चुनाव जीत गए थे. 1957 के दूसरे संसदीय चुनाव में भी निर्दलीय उम्मीदवार के खाते में जीत गई. तब राजा महेंद्र प्रताप सिंह को जीत मिली थी. 10 साल के लंबे इंतजार के बाद 1962 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का मथुरा सीट से खाता खुला था. तब चौधरी दिगंबर सिंह विजयी रहे थे. 1967 में भी वह विजयी रहे थे.

साल 1971 में आम चुनाव में कांग्रेस को फिर जीत मिली और चकलेश्वर सिंह सांसद बने. इमरजेंसी की वजह से कांग्रेस को 1977 के चुनाव में कई सीटों पर हार का सामना करना पड़ा और मथुरा में भी उसे हार मिली थी. 1977 में जनता दल के मनीराम बागरी को जीत मिली. 1980 में चौधरी दिगंबर सिंह फिर से विजयी हुए. लेकिन इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1984 के चुनाव में कांग्रेस को सहानुभूति लहर का फायदा मिला और यह सीट भी उसके खाते में आ गई. लेकिन 1989 में जनता दल को जीत मिली.

90 के दशक में राम मंदिर के आंदोलन में बीजेपी का मथुरा में दबदबा बनने लगा. 1991 के चुनाव में साक्षी महाराज को जीत मिली. फिर 1996, 1998 और 1999 में बीजेपी के टिकट पर राजवीर सिंह ने जीत की हैट्रिक लगाई. लेकिन 2004 के चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर मानेंद्र सिंह को जीत मिली. फिर 2009 के चुनाव में बीजेपी और राष्ट्रीय लोकदल के बीच चुनावी गठबंधन था और यहां से आरएलडी के नेता जयंत चौधरी मैदान में उतरे और वह 1,69,613 मतों के अंतर से चुनाव जीतने में कामयाब रहे.

कृष्ण की धरती पर जातीय समीकरण क्या

2014 के चुनाव में मोदी लहर दिखाई दी और इस सीट से बीजेपी की हेमा मालिनी ने तत्कालीन सांसद और आरएलडी के प्रत्याशी जयंत चौधरी को हराकर चुनाव जीता था. तब हेमा 1,69,613 मतों के अंतर से चुनाव जीती थीं. यहां पर तीसरे नंबर पर बहुजन समाज पार्टी रही थी. फिर 2019 में हेमा ने सपा-बसपा के साझे उम्मीदवार कुंवर नरेंद्र सिंह को 2,93,471 मतों के अंतर से हराया था. दोनों चुनाव में हेमा मालिनी को करीब 3 लाख मतों के अंतर से जीत मिली थी, लेकिन 2014 की तुलना में 2019 में हार-जीत के अंतर में मामूली गिरावट आई थी.

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आने वाली मथुरा सीट पर जाट बिरादरी और मुस्लिम वोटर्स का खासा वर्चस्व माना जाता है. यहां के जातीय वोट को देखें तो 2019 के समय यहां पर सबसे अधिक जाट वोटर्स थे जिनकी संख्या करीब सवा 3 लाख थी. इनके अलावा ब्राह्मण बिरादरी के वोटर्स (पौने 3 लाख) थे. ठाकुर, जाटव और मुस्लिम वोटर्स की संख्या इनके बाद आती है. वैश्य और यादव बिरादरी के भी वोटर्स अहम भूमिका में रहते हैं.

Show More

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button