BJP Clean Sweep Plan Of Bihar UP And Jharkhand 134 Seats In Lok Sabha 2024 Abpp

बीजेपी विपक्षी एकता को बिहार, यूपी और झारखंड में ही चित करने की रणनीति पर काम कर रही है. तीनों राज्यों की 134 सीटों पर क्लीन स्विप करने के लिए बीजेपी ने 2 प्लान तैयार किया है. पहला, बड़े दलों की बजाय छोटी पार्टियों से गठबंधन और दूसरा कद्दावर नेताओं को मैदान में उतारने की तैयारी.
बीजेपी हाईकमान की ओर से बिहार और यूपी के छोटे दलों से लगातार बातचीत की जा रही है. चर्चा के मुताबिक इस कवायद में बिहार और यूपी की 2 छोटी पार्टियों को साधा भी जा चुका है. बीजेपी उत्तर-भारत के 3 राज्यों की 10 छोटे दलों को साथ लाकर चुनाव लड़ना चाहती है.
बीजेपी की इस रणनीति को राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के विस्तार करने के रुप में भी देखा जा रहा है. 2019 के चुनाव में बीजेपी गठबंधन को 134 में से 115 सीटों पर जीत मिली थी. हालांकि, 16 सीट जीतने वाली जेडीयू अब गठबंधन से बाहर है.
बिहार: कौन सधा, किसे साथ लाने की है तैयारी?
बिहार में बीजेपी के खिलाफ 2024 में जेडीयू, आरजेडी, कांग्रेस और वाममोर्चा का मजबूत गठजोड़ है. इस चक्रव्यूह को तोड़ने के लिए बीजेपी 2014 के फॉर्मूले पर काम कर रही है. 2014 में बीजेपी ने रामविलास पासवान और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी के साथ गठबंधन किया था.
2014 में एनडीए को बिहार में 31 सीटो पर जीत मिली थी. 2019 में जेडीयू और लोजपा के साथ मिलकर बीजेपी चुनाव लड़ी थी और सारे पुराने रिकॉर्ड को तोड़ते हुए 39 सीटों पर जीत हासिल की थी, लेकिन 2022 में जेडीयू ने बीजेपी से गठबंधन तोड़ लिया.
2024 के संग्राम में उतरने से पहले बीजेपी बिहार में चिराग पासवान, पशुपति पारस, उपेंद्र कुशवाहा, जीतन राम मांझी और मुकेश सहनी को साधने की कोशिश में है. अब तक चिराग, पारस, कुशवाहा को साध लिया गया है. मांझी भी जल्द ही एनडीए में शामिल हो सकते हैं.
इसके बाद मुकेश सहनी को साथ लाने की कोशिश पार्टी करेगी. सहनी पहले भी एनडीए का हिस्सा रह चुके हैं, लेकिन यूपी चुनाव के बाद उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था.
बिहार में वर्तमान में बीजेपी के खिलाफ जिन 6 पार्टियों का मजबूत गठबंधन है, उसका वोट प्रतिशत करीब 50 प्रतिशत है. इस मुकाबले बीजेपी का वोट प्रतिशत 25 के आसपास है. ऐसे में बीजेपी छोटी पार्टियों को जोड़कर लड़ाई को आमने-सामने की बनाने की कोशिश में है.
बिहार में अगर इन सभी दलों को बीजेपी साधने में अगर कामयाब हो जाती है, तो उसके वोट में 9 प्रतिशत का इजाफा हो सकता है. साथ ही 15 सीटों पर लड़ाई आसान हो जाएगी.
यूपी में पूर्वांचल के साथ पश्चिम भी साधने की चुनौती
सियासी गलियारों में एक कहावत है- दिल्ली का रास्ता यूपी से होकर ही जाता है. विपक्षी एका के बीच बीजेपी यूपी में मजबूत दिखने की कोशिश में है. बीजेपी इसके लिए छोटे दलों को साध रही है. इनमें कुछ दल पूर्वांचल में प्रभावी है, तो कुछ पश्चिम में.
2014 में बीजेपी उत्तर प्रदेश में अपना दल के साथ गठबंधन कर रिकॉर्ड 73 सीटों पर जीत दर्ज की थी. 2019 में बीजेपी का ग्राफ नीचे गया और एनडीए को 64 सीटों पर जीत मिली. बीजेपी इस बार भी 70 प्लस के टारगेट पर काम कर रही है.
2019 में बीजेपी पश्चिम यूपी की 7 सीटों पर चुनाव हार गई थी. 2022 के चुनाव में पूर्वांचल में बीजेपी को सपा गठबंधन ने पटखनी दे दी. दोनों चुनाव में छोटी पार्टियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
बीजेपी इस बार पूर्वांचल में अपना दल (सोनेलाल), निषाद पार्टी और सुहेलदेव समाज पार्टी को और पश्चिम में राष्ट्रीय लोक दल को साथ रखना चाहती है. अपना दल और निषाद पार्टी अभी एनडीए में है, जबकि सुभासपा से बातचीत चल रही है.
आरएलडी अगर सपा का साथ छोड़ती है, तो बीजेपी उस पर डोरे डाल सकती है. हालांकि, अभी इसकी उम्मीद कम ही है.
सुभाषपा से गठबंधन होने पर बीजेपी को अंबेडकर नगर, गाजीपुर, घोषी, मऊ और बलिया सीट पर चुनाव लड़ने में आसानी हो जाएगी. यहां अगर ओम प्रकाश राजभर वोट ट्रांसफर कराने में सफल रहते हैं, तो लड़ाई एकतरफा भी हो सकती है.
वहीं निषाद पार्टी का गोरखपुर, देवरिया और संतकबीरनगर में असर है. अपना दल मिर्जापुर, प्रतापगढ़, आजमगढ़, रामपुर और कौशांबी जैसी सीटों का खेल बदलने में में अहम भूमिका निभा सकती है.
झारखंड: यहां की राह सबसे मुश्किल, मरांडी-महतो ही सहारा
2019 के चुनाव में बीजेपी गठबंधन ने झारखंड की 14 में से 12 सीटों पर जीत दर्ज की थी, लेकिन 6 महीने बाद हुए विधानसभा चुनाव में पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा था. मुख्यमंत्री रघुबर दास खुद चुनाव हार गए थे.
झारखंड में बीजेपी के पास इसके बाद से कोई लोकल चेहरा नहीं है. 2019 चुनाव के बाद झारखंड विकास मोर्चा का बीजेपी में विलय हो गया था. बाबूलाल मरांडी को पार्टी ने विधायक दल का नेता भी बनाया था, लेकिन तकनीक वजहों से मामला स्पीकर कोर्ट में है.
बीजेपी इस बार झारखंड जीतने के लिए गठबंधन के अलावा एक अन्य रणनीति पर भी काम कर रही है. पहला, अपने 3 पूर्व मुख्यमंत्रियों को मैदान में उतारेगी. इनमें रघुबर दास, बाबूलाल मरांडी और अर्जुन मुंडा का नाम शामिल है. इसे सीट को वीआईपी बनाकर लड़ाई आसान करने रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है.
छोटे दलों को साथ रखने की रणनीति क्यों, 2 वजह…
सीट की डिमांड कम, वोट शिफ्ट कराने में माहिर- लोकसभा चुनाव में छोटे दलों का सीट की डिमांड कम रहती है. कई बार बिना सीट लिए भी छोटे दल अन्य समीकरणों के सहारे समर्थन कर देती है. 2019 में आरपीआई ने राज्यसभा की सीट लेकर महाराष्ट्र में बीजेपी का समर्थन कर दिया था.
सीट की डिमांड कम होने के साथ-साथ इन दलों के पास वोट शिफ्ट कराने की क्षमता होती है. ये दल आसानी से चुनाव में अपना वोट त्वरित मुद्दा बनाकर राष्ट्रीय पार्टी को शिफ्ट करा देती है, जिससे जीत का समीकरण पक्ष में हो जाता है.
ओबीसी विरोधी छवि तोड़ने में मददगार– विपक्षी एकता का बड़ा मुद्दा जातीय जनगणना है, जिससे बीजेपी की ओबीसी विरोधी छवि बन रही है. इसे तोड़ने के लिए पार्टी छोटे दलों को साथ ले रही है. उपेंद्र कुशवाहा, मुकेश सहनी, ओम प्रकाश राजभर और संजय निषाद अपने-अपने समाज को साधने के लिए दल का गठन किया है.
बीजेपी इन नेताओं के सहारे जातीय जनगणना के खिलाफ बन रहे माहौल को कुंद करने की कोशिश में है. अगर यह प्लान सक्सेस रहा तो बीजेपी को इन राज्यों में बड़ा फायदा मिल सकता है.
अब उन दलों का किस्सा, जिससे गठबंधन पर बात बन सकती है…
1. लोजपा (आर) और रालोजपा- बिहार के दलित नेता रामविलास पासवान ने लोजपा का गठन किया था. 2014 में पासवान नरेंद्र मोदी के साथ आ गए. पासवान के रहते 2020 तक बीजेपी और लोजपा में सबकुछ ठीक था, लेकिन 2021 में चिराग के चाचा ने खेल बिगाड़ दिया.
पशुपति पारस ने 5 सांसदों के साथ चिराग को नेता और अध्यक्ष पद से हटा दिया, जिसके बाद लोजपा का मामला चुनाव आयोग के पास चला गया. पशुपति पारस गुट के पास वर्तमान में 5 सांसद हैं और पारस खुद कैबिनेट में मंत्री हैं.
बीजेपी चिराग को भी साध रही है, लेकिन चिराग की डिमांड इस बार ज्यादा है. माना जा रहा है कि इसलिए अभी तक बीजेपी और चिराग के बीच समझौते का ऐलान नहीं हुआ है.
2. रालोजद और हम- दोनों पार्टी नीतीश कुमार की जेडीयू से टूटकर बनी है. हाल ही में दोनों महागठबंधन से अलग होने का फैसला किया है. हम और रालोजद जल्द ही एनडीए में शामिल होने की घोषणा कर सकती है.
रालोजद को लोकसभा की 3 सीटें और हम को 1 सीटें दिए जाने की चर्चा है. हालांकि, गठबंधन और सीट पर फाइनल ऐलान अभी तक नहीं हुआ है.
3. वीआईपी और सुभासपा- सुहेलदेव समाज पार्टी उत्तर प्रदेश की क्षेत्रिय पार्टी है, जबकि वीआईपी बिहार की. दोनों पार्टियों पिछड़े और दलित की पॉलिटिक्स करती है. बीजेपी के साथ दोनों का गठबंधन भी रह चुका है.
2024 में भी दोनों के एनडीए में आने की अटकलें लग रही है. हालांकि, सीट को लेकर पेंच फंसा हुआ है.