उत्तर प्रदेशभारत

Prayagraj: फिर उठी शाही स्नान-पेशवाई के नाम बदलने की मांग, साधु-संतों का मिला समर्थन

आस्था और धर्म की नगरी प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन होने जा रहा है. महाकुंभ के आयोजन से पहले अखाड़ों के नगर प्रवेश के मौके पर निकाली जाने वाली पेशवाई और प्रमुख स्नान पर्वों पर अखाड़े के होने वाले शाही स्नान का नाम बदले जाने की मांग तेज होने लगी है. साधु संत, मुगलकालीन नाम पेशवाई और शाही स्नान का नाम बदलने की मांग कर रहे हैं. संगम नगरी प्रयागराज में कीडगंज स्थित श्री पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन में जुटे कई अखाड़ों के संत महात्माओं ने एक बार फिर से पेशवाई और शाही स्नान का नाम बदले जाने की मांग उठाई है. हालांकि इस पर अंतिम फैसला साधु संतों की सर्वोच्च संस्था अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद को ही करना है.

पेशवाई और शाही स्नान का नाम बदले जाने को लेकर निर्वाणी अनी अखाड़े के संत महंत गोपाल दास जी महाराज का कहना है कि समय के साथ मनुष्य को और राष्ट्र को भी बदलना चाहिए. उन्होंने साधु-संतों के पेशवाई और शाही स्नान का नाम बदले जाने की मांग का समर्थन किया. उन्होंने कहा कि हमारी सनातन परंपरा में जो मुगल काल के शब्द हैं उन्हें हटाकर संस्कृत के शब्दों का प्रयोग करना चाहिए. उन्होंने कहा कि ऐसे शब्दों का प्रयोग पेशवाई और शाही स्नान के लिए होना चाहिए जो कि सनातन से जुड़े हुए हैं और जिस पर हमें गर्व की अनुभूति होती हो.

साधु संतों ने किया समर्थन

महंत गोपाल दास जी महाराज ने कहा की शाही स्नान के बदले दिव्य स्नान, अमृत स्नान या फिर राजसी स्नान कहा जा सकता है. वहीं कुंभ के पहले अखाड़े के नगर प्रवेश के समय निकली जाने वाली पेशवाई का नाम बदलकर छावनी प्रवेश किए जाने की मांग का भी साधु संतों ने समर्थन किया है. दरअसल, कुंभ और महाकुंभ के पहले अखाड़ों के महामंडलेश्वर और मंडलेश्वर के साथ महंत, श्री महंत और बाकी साधु संत अखाड़ों के ईष्ट देवता और ध्वज को लेकर बैंड बाजे के साथ नगर प्रवेश करते हैं जिसे पेशवाई कहे जाने की परंपरा है. लेकिन अब पेशवाई को छावनी प्रवेश कहे जाने की मांग हो रही है. महंत गोपाल दास जी महाराज के मुताबिक जब दो राजाओं के बीच युद्ध होते थे तब छावनी प्रवेश ही कहा जाता था. महंत गोपाल दास जी के मुताबिक जल्द ही सभी अखाड़ों के पदाधिकारियों के बीच बैठक होगी जिसमें इस मामले में कोई उचित फैसला लिया जाएगा.

बहुत प्राचीन संस्थाएं हैं अखाड़े

वहीं इस मामले में श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी के सचिव महंत यमुना पुरी महाराज के मुताबिक अखाड़े बहुत प्राचीन संस्थाएं हैं. उनके मुताबिक अखाड़ों में बहुत सारी चीजे मुगल काल से चली आ रही हैं. उन्होंने कहा है कि जहां तक शाही स्नान और पेशवाई का नाम बदले जाने का सवाल है, उर्दू और फारसी शब्द अदालतों से लेकर सरकारी कामकाज तक में इस्तेमाल करते हैं. अखाड़े के पुराने दस्तावेजों में भी पेशवाई और शाही स्नान का ही विवरण मिलता है लेकिन महंत यमुना पुरी का कहना है कि अगर इन नाम को बदलना है तो हर जगह संशोधन करना पड़ेगा. उन्होंने कहा कि कुंभ मेले के पहले अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद की कई बैठकें प्रस्तावित हैं जिसमें इस पर विचार कर सर्वसम्मति से कोई फैसला लिया जाएगा. उन्होंने कहा है कि संसार परिवर्तनशील है और हिंदी अपनी मातृभाषा है इसलिए हमें अपनी भाषा और बोली पर गर्व होना चाहिए.

दोनों गुटों के एकजुट होने की संभावना

वहीं महाकुंभ के पहले अखाड़े के दोनों गुटों के एकजुट होने की संभावना को लेकर महंत यमुना पुरी ने कहा है कि सांस्कृतिक रूप से सभी अखाड़े एक हैं, सभी अखाड़ों के स्नान अपने-अपने तय समय पर होते हैं. शोभायात्राएं भी समय पर निकालते हैं. उन्होंने कहा कि अखाड़े के बीच किसी तरह का मनभेद नहीं है. सभी अखाड़े सनातन परंपरा के अनुयाई हैं. सनातन धर्म का प्रचार प्रसार करना सभी अखाड़ों का दायित्व और सभी अखाड़े यही काम कर रहे हैं.

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