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Mahakumbh 2025: महाकुंभ मेला एक पवित्र समागम है जो हर बारह वर्षों में होता है, यह लाखों लोगों का एक जनसमूह ही नहीं है यह एक आध्यात्मिक यात्रा है, जो मानव अस्तित्व के मूल में उतरती है.
13 जनवरी से शुरू हुआ महाकुंभ 26 फरवरी 2025 तक चलेगा. महाकुंभ में भाग लेने वाले नागा साधु, अघोरी और संन्यासी सनातन धर्म और परंपरा की गहराई और विविधता को दर्शाते हैं.
महाकुंभ में संत-महात्मा और ऋषि-मुनियों का संगम होता है, जो समाज का मार्गदर्शन और व्याप्त समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करते थे. आज एबीपी लाइव में महाकुंभ पर विशेष पेशकश हुई. ABP Live के ‘धर्म प्रवाह’ कार्यक्रम में देश के जानमाने संतों ने अपने विचार रखें- आइए जानें.
स्वामी चिदानंद सरस्वती
संतों के समागम कार्यक्रम में ऋषिकेश में स्थित परमार्थ निकेतन आश्रम के अध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती ने गंगा आरती को लेकर महत्वपूर्ण बातें बताई. उन्होंने बताया कि ‘बचपन में मुझे गंगा के तट पर आने का अवसर मिला, तब से जीवन बदला.
गंगा मेरे लिए मां है, तब ये लगा की गंगा के जल में किसी तरह का प्रदूषण न जाए. इसके लिए लोगों को जाग्रत किया गंगा जी की आरती से. इसकी शुरुआत की 1960 के आसपास ऋषिकेश में बाढ़ आई थी तब गंगा जी आरती की और सारा प्रवाह धीरे-धीरे शांत हुआ तब ये गंगा जी की आरती निरंतर करने की अलख जगी.
गंगा जी की आरती इसलिए नहीं की क्योंकि वो मां है, वो हमारी प्रेरणा है वो सबके लिए बहती हैं और सबके लिए समान हैं. गंगा जी ने कभी भेदभाव नहीं किया. गंगा जी ने सबके खेतों को सींचा.
स्वामी जी के अनुसार सरल बनना पर सस्ता मत बनो. जो चीजें हमें सस्ता बना दें, सस्ते पद पर ले जाएं उसे न करें. ये हमें जीवन में अंधकार की ओर ले जाती है. गंगा की प्रवाह धारा हमें सात्विकता, सरलता और सजगता का संदेश देती है.
इस कुंभ का ये संदेश होना चाहिए कि गंगा के तट पर आने वाले लोग गंगा को प्रदूषित न करें. मेले को मैला न करें’
महामंडलेश्वर हिमांगी सखी
महाकुंभ में स्नान के महत्व को बताते हुए महामंडलेश्वर हिमांगी सखी ने कहा कि जब हम कुंभ के दौरान गंगा में स्नान करते हैं तो उसमें अमृत की बूंदे होती है. इसमें स्नान कर व्यक्ति निषपाप हो जाता है. पवित्र हो जाता है और जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है.
हालांकि जानबूझकर किया पाप अपराध होता है. जो कभी क्षमा नहीं होता. स्नान के बाद भी वह नष्ट नहीं होता चाहे कितनी ही आस्था की डुबकी लगा लो.
दान को लेकर क्या कहा – महामंडलेश्वर हिमांगी सखी ने बताया कि हर जीव आत्म का दान करें, विचारों का दान करें, मन की गंदगी का दान करें और जीवन श्रीहरि को समर्पित करें तभी सही मायनों में वह दान का पुण्य कमाएगा.
मनुष्य जीवन मिला है तो हमारा जीवन सार्थक होना चाहिए, कलियुग में हम जितना हरि भजन करेंगे उतना जीवन सार्थक होगा, ईश्वर की कृपा भी बरसेगी.
हिमांगी सखी कौन हैं ?
देश की पहली किन्नर कथा वाचक हैं हिमांगी सखी. हिमांगी सखी को महामंडलेश्वर की उपाधि पशुपतिनाथ पीठ अखाड़े से मिली है.
चिन्मयानंद बापू जी महाराज
महाकुंभ का शास्त्रों में वर्णन है. प्रयागराज में स्नान से अमृत की प्राप्ति होती है जो समुद्र मंथन के दौरान देवताओं को प्राप्त हुआ. खास तिथियों पर स्नान करने वालों को वही पुण्य मिलता है.
देश के युवाओं के लिए चिन्मयानंद बापू जी ने कहा कि धर्म को ऊपर-ऊपर से न देखें. धर्म का संबंध बाहरी आडंबर से नहीं, अंतर आत्मा से है. भगवान ने जो युवाओं को सुंदर आंखे दी है उससे हरि को देखें. युवाओं जब धर्म का ज्ञान होगा तो उनको जीवन जीने की कला अपने आप पता चल जाएगी, क्योंकि धर्म व शास्त्र जीवन जीने की कला सिखाते हैं.
चिन्मयानंद बापू जी कौन हैं ?
स्वामी चिन्मय नन्द बापू का जन्म 15 मई 1979 को उत्तर प्रदेश के गापीरा गांव में हुआ था. 9 वर्षों की बहुत कम उम्र में, उन्होंने इस दुनिया के लिए अलगाव विकसित किया और भगतवाद गीता कथा को सुनते हुए, उन्होंने आध्यात्मिक विकास के मार्ग को आगे बढ़ाने और एक संत बनने का फैसला किया.
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