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Thalassemia Minor: थैलेसीमिया माइनर क्या है? छोटे बच्चों को किस तरह से करता है प्रभावित? साथ ही जानें इसका इलाज


<p style="text-align: justify;">थैलेसीमिया की बीमारी माता-पिता से बच्चों को मिलने वाली जेनेटिक बीमारी है. यह एक तरह का ब्लड डिसऑर्डर है. अगर यह बीमारी किसी बच्चे का यह व्यस्क को हो जाए तो उसकी शरीर में खून बनने में दिक्कत होने लगती है. जिसके कारण एनीमिया के लक्षण शरीर पर साफ दिखाई देने लगते हैं. इसकी पहचान किसी भी बच्चे में जन्म के तीन महीने के बाद ही दिखाई देने लगते हैं. इस बीमारी में मरीज के शरीर में खून की कमी होने लगती है. जिसके कारण उसे बार-बार ब्लड की जरूरत पड़ती है.&nbsp;</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>क्या होता है माइनर थैलेसीमिया?</strong></p>
<p style="text-align: justify;">आपकी जानकारी के लिए बता दें कि थैलेसीमिया दो तरह की होती है. अगर बच्चे के माता-पिता दोनों के जींस में माइनर थैलेमीसिमिया है तो बच्चे को मेजर थैलेमीसिया की बीमारी हो सकती है. जो काफी ज्यादा खतरनाक हो सकता है. &nbsp;</p>
<p style="text-align: justify;">अगर माता-पिता दोनों में से किसी एक में भी माइनर थैलेसीमिया है तो बच्चे को खतरा नहीं होता है. अगर माता-पिता दोनों को माइनर थैलेसीमिया है तो बच्चे को 25 प्रतिशत इस बीमारी का खतरा रहता है. इसलिए बेहद जरूरी है कि महिला और पुरुष दोनों शादी से पहले ब्लड टेस्ट जरूर कराएं.&nbsp;</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>अल्फा ग्लोबिन और बीटा ग्लोबिन</strong></p>
<p style="text-align: justify;">’वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन’ के मुताबिक भारत में हर साल 7-10 हजार थैलीमिया से पीड़ित बच्चे जन्म लेते हैं. देश की राजधानी दिल्ली और उसके आसपास वाली जगह में इन बच्चों की संख्या करीब 1500 है. सबसे हैरानी की बात यह है कि कुल जनसंख्या की 3.4 प्रतिशत थैलेसीमिया से पीड़ित हैं. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि हीमोग्लोबीन दो तरह के प्रोटीन से बनता है अल्फा ग्लोबिन और बीटा ग्लोबिन. दरअसल, थैलीमसीमिया इन प्रोटीन में ग्लोबीन बनने की प्रोसेस में खराबी के कारण होता है. जिसके कारण रेड ब्लड सेल्स तेजी से खराब हो जाते हैं. ब्लड की भारी कमी के कारण इसके मरीज को बार-बार ब्लड चढ़ाना पड़ता है. बार ब्लड चढ़ाने के कारण लौह तत्व शरीर में जमने लगता है. जिससे दिल, लिवर और फेफड़ों के लिए खतरनाक साबित हो सकता है.&nbsp;</p>
<p><strong>थैलेसीमिया दो तरह के होते हैं:एक मेजर और दूसरा माइनर.</strong></p>
<p>थैलेसीमिया मेजर: यह बीमारी उन बच्चों में होने की आशंका ज्यादा बढ़ जाती है. जिनके माता-पिता दोनों के जींस में थैलेसीमिया होते हैं.&nbsp;</p>
<p>थैलेसीमिया माइनर: थैलेसीमिया माइन उन बच्चों के होता है जिनके माता-पिता में से किसी एक को थैलेसीमिया होता है. ऐसी स्थिति में बच्चों को होने का जोखिम कम होता है.&nbsp;</p>
<p><strong>थैलेसिमिया के लक्षण</strong></p>
<p>बच्चों के नाखून और जीभ का पीला पड़ना साथ ही जौंडिस के लक्षण भी दिखाई देना.</p>
<p>बच्चों के जबड़ों और गालों पर लाल चकत्ते होना.</p>
<p>बच्चों का विकास रूक जाना और साथ ही उम्र से भी कम दिखाई देना</p>
<p>चेहरा का सूखा होना, वजन का न बढ़ना, हमेशा कमजोर और बीमार दिखना, कमजोरी और सांस लेने में तकलीफ होना</p>
<p><strong>Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.</strong></p>
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