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Loksabha Election 2024: पीलीभीत से वरुण गांधी के परिवार का 35 साल का रिश्ता, क्या आज लग जाएगा ब्रेक? | pilibhit lok sabha seat nomination last day varun gandhi maneka gandhi BJP

Loksabha Election 2024: पीलीभीत से वरुण गांधी के परिवार का 35 साल का रिश्ता, क्या आज लग जाएगा ब्रेक?

वरुण और मेनका गांधी

पीलीभीत लोकसभा सीट पर नामांकन का आज यानी बुधवार को आखिरी दिन है. बीजेपी उम्मीदवार के तौर पर जितिन प्रसाद पीलीभीत सीट से नामांकन करेंगे तो सभी की निगाहें वरुण गांधी पर टिकी हुई हैं. बीजेपी ने वरुण गांधी का टिकट काटकर जितिन प्रसाद को कैंडिडेट बनाया है. हालांकि, नामांकन प्रक्रिया शुरू होने के साथ ही वरुण गांधी ने नामांकन पत्र के चार सेट खरीद लिए थे जबकि पीलीभीत सीट पर उम्मीदवार के नाम का ऐलान भी नहीं हुआ था. ऐसे में वरुण गांधी के सियासी क्लाइमेक्स से कुछ घंटे में तस्वीर साफ हो जाएगी?

बीजेपी ने वरुण गांधी को पीलीभीत सीट से प्रत्याशी नहीं बनाया, लेकिन उनकी मां मेनका गांधी को सुल्तानपुर सीट से उतारा है. टिकट कटने के बाद से वरुण गांधी शांत हैं. उनका कोई बयान नहीं आया है. मेनका के टिकट फाइनल होते ही कशमकश की स्थिति बन गई है. सपा के कैंडिडेट ने पहले ही वरुण गांधी को खुला ऑफर दे रखा है कि अगर वो चुनाव लड़ना चाहें वो मैदान छोड़ने के लिए तैयार हैं.वहीं, अब कांग्रेस की तरफ से भी ऑफर दिया जा रहा है. नामांकन का आज अंतिम दिन हैं. ऐसे में कुछ घंटे में तस्वीर साफ हो जाएगी कि वरुण मैदान छोड़ेंगे या फिर कोई अन्य कदम उठाएंगे?

1989 में मेनका गांधी ने बनाई कर्मभूमि

वरुण गांधी के पिता संजय गांधी के निधन के बाद उनकी मां मेनका गांधी ने पीलीभीत लोकसभा सीट को अपनी कर्मभूमि बनाई थी, जिसे उन्होंने अपने मजबूत दुर्ग के तौर पर स्थापित किया. साल 1989 से मेनका गांधी पीलीभीत से चुनाव लड़ रही हैं, जबकि वरुण गांधी 2009 और 2019 यहां से जीत दर्ज किए हैं. वरुण गांधी 2014 में सुल्तानपुर से सांसद चुने गए थे. ऐसे में वह अब पीलीभीत सीट से चुनावी मैदान में नहीं उतरते हैं तो फिर 35 साल से चले आ रहे उनके परिवार के सियासी रिश्ते पर ब्रेक लग जाएगा?

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वरुण गांधी के परिवार का पीलीभीत लोकसभा सीट से रिश्ता साढ़े तीन दशक पुराना है. मेनका गांधी ने अपनी सियासी पारी का आगाज संजय गांधी के निधन के बाद 1984 में अमेठी से किया था. राजीव गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ी थी्ं, लेकिन जीत नहीं सकीं. इसके बाद ही उन्होंने पीलीभीत सीट को चुना. साल 1989 में जनता दल के टिकट पर पीलीभीत सीट से चुनावी मैदान में उतरीं तो तराई के लोगों ने मेनका को सिर-आंखों पर बैठाया. वो जीतकर संसद पहुंचीं, लेकिन 1991 में हुए लोकसभा चुनाव में हार गईं.

मेनका गांधी ने 1996 में जनता दल से चुनाव लड़कर हिसाब बराबर किया. इसके बाद मेनका ने 1998 और 1999 में पीलीभीत सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर जीतीं. अटल बिहार वाजपेयी सरकार में मंत्री रहीं और 2004 में मेनका ने बीजेपी उम्मीदवार के तौर पर जीत दर्ज किया, लेकिन वरुण गांधी ने सियासत में आने का फैसला किया तो उन्होंने पीलीभीत सीट बेटे के लिए छोड़ दी.

2009 में हुई वरुण गांधी की एंट्री

2009 में वरुण गांधी पीलीभीत से सांसद बने तो मेनका गांधी आंवला सीट से सांसद चुनी गईं. 2014 में बीजेपी ने वरुण को सुल्तानपुर से तो मेनका गांधी को पीलीभीत से चुनावी मैदान में उतारा. मां-बेटे दोनों ही जीतने में सफल रहे, लेकिन 2019 में फिर से दोनों की सीट बदल दी गई. 2019 में बीजेपी ने वरुण गांधी के पीलीभीत से तो मेनका गांधी को सुल्तानपुर से प्रत्याशी बनाया.

इस बार भी दोनों जीतने में सफल रहे, लेकिन बीजेपी ने 2024 में वरुण गांधी को पीलीभीत से टिकट नहीं दिया जबकि उनकी मां मेनका गांधी को सुल्तानपुर से प्रत्याशी बनाया है. वरुण गांधी अगर बीजेपी से बगावत कर बुधवार को पीलीभीत सीट से नामांकन दाखिल करते हैं तो सीधा असर सुल्तानपुर से चुनाव लड़ने जा रहीं उनकी मां मेनका गांधी पर भी पड़ सकता है.

वरुण गांधी और मेनका गांधी खामोशी अख्तियार किए हुए हैं. हालांकि, कांग्रेस से लेकर सपा तक उन पर डारे डाल रही है और अलग-अलग चर्चांए भी हो रही हैं. ऐसे में पीलीभीत सीट से नामांकन करने का आज अंतिम दिन है, जिसके बाद सभी की निगाहें वरुण गांधी के कदम पर है.

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