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Onboard INS Vikrant : आईएनएस विक्रांत भारत का पहला स्वदेश निर्मित युद्धपोत है और यह हिंद महासागर क्षेत्र में भारत का पसंदीदा सुरक्षा कवच बनेगा. यह युद्दपोत हिंद महासागर में सामरिक सुरक्षा को मजबूती प्रदान करेगा. साथ ही, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भी भारत की मजबूत उपस्थिति को दर्ज कराएगा. 3 बिलियन डॉलर की लागत से बनाये गए इस युद्धपोत को सितंबर 2022 में भारतीय नौसेना में शामिल किया गया. तब से युद्धपोत ने कई गहन ऑपरेशन किए हैं, जिसमें लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (नौसेना) और MIG-29K का लैंडिंग और टेक-ऑफ शामिल है, जो कि इस युद्धपोत पर लड़ाकू विमानों के एकीकरण को चिह्नित करता है. 

INS विक्रांत की हिंद महासागर में तैनाती को लेकर कमांडिंग ऑफिसर कैप्टन विद्याधर हरके ने एबीपी लाइव को बताया कि विक्रांत हिंद महासागर में भारत के रणनीतिक स्थान को भी मजबूत करेगा. भारतीय नौसेना हिंद महासागर क्षेत्र में सभी देशों के साथ काम करने के लिए तैयार है और हम सभी के पसंदीदा सुरक्षा भागीदार बनी है. उन्होंने यह भी कहा कि भारत यथास्थिति को बनाए रखने में दृढ़ विश्वास रखता है. समुद्र में सभी का हिस्सा है और हम संचार के समुद्री मार्गों की स्वतंत्रता बनाए रखने और समुद्र से निकलने वाली सभी सुविधाओं की उपलब्धता को बनाए रखने की दिशा में काम करेंगे.

हार्के ने कहा कि जहाज की प्राथमिक भूमिका निर्बाध अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए समुद्री-मार्गों को मुक्त व नेविगेशन की स्वतंत्रता को बनाए रखना है. यही कारण है कि अपने पूरे युद्ध समूह के साथ एक वाहक होना महत्वपूर्ण है. आईएनएस विक्रांत में 76 प्रतिशत स्वदेशी सामग्री लगी है, जिसमें विभिन्न इंजीनियरिंग सहायक, हथियार, सेंसर, डेक और इलेक्ट्रिकल मशीनरी, संपूर्ण बिजली वितरण प्रणाली और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणाली, युद्ध प्रबंधन प्रणाली जैसी विशिष्ट प्रौद्योगिकियां शामिल हैं. हालाँकि, जहाज में अमेरिका, फ्रांस, इज़राइल और रूस से आयातित कुछ कंपोनेंट्स भी लगाए गये हैं. रक्षा सूत्रों ने कहा कि जहाज न केवल हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की बढ़ती ताकत का दावा करेगा, बल्कि यह “चीन को एक मजबूत संकेत” भी भेजेगा, जो तेजी से अपनी नौसैनिक क्षमताओं का आधुनिकीकरण कर रहा है. चीनी मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, बीजिंग ने जून 2022 में अपना तीसरा विमानवाहक पोत-फुज़ियान-लांच किया है और वह साल के अंत में अपनी पहली यात्रा शुरू करेगी. यूनाइटेड स्टेट्स नेवल इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट के अनुसार, चीन 2030 तक 10 परमाणु बैलिस्टिक मिसाइलों के साथ कुल पांच विमान वाहक लॉन्च करने की योजना पर काम कर रहे हैं.

आईएनएस विक्रांत का अगला लक्ष्य ‘पूर्ण युद्ध क्षमता हासिल करना’

आईएनएस में लगभग 2200 डिब्बे हैं. इसे 1,600 के चालक दल के लिए डिज़ाइन किया गया है जिसमें महिला अधिकारियों और नाविकों को समायोजित करने के लिए विशेष केबिन शामिल हैं. वाहक को मशीनरी संचालन, जहाज नेविगेशन और उत्तरजीविता के लिए उच्च स्तर के स्वचालन के साथ डिजाइन किया गया है. समुद्री सुरक्षा के क्षेत्र में आईएनएस एक मिल साबित होगा जिसे भारत ने हासिल किया है, जो केवल कुछ मुट्ठी भर देश ही कर पाए हैं. एक विमानवाहक पोत का डिजाइन, निर्माण और संचालन करना आसान काम नहीं है. अभी तक पूरी दुनिया में केवल छह देश ही इस उपलब्धि को हासिल कर पाए हैं. जहाज 30 विमानों से युक्त एक एयर विंग को संचालित करने में सक्षम है, जिसमें स्वदेश निर्मित एडवांस्ड लाइट हेलीकॉप्टर (एएलएच) के अलावा कामोव-31, एमएच-60आर जैसे हेलीकॉप्टर भी शामिल हैं. उन्हें इसके स्की-रैंप स्टाइल डेक से लॉन्च किया जाता है और जहाज सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलों सहित रक्षात्मक प्रणालियों से भी लैस है. आईएनएस विक्रांत को नौसेना के युद्धपोत ब्यूरो द्वारा 45,000 टन के विस्थापन के साथ डिजाइन किया गया है और इसे 20,000 करोड़ रुपये की लागत से बनाया गया है.

आईएनएस जल्द ही मालाबार नौसेना अभ्यास के दौरान अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया की नौसेनाओं में शामिल होगा जो इस साल के अंत में ऑस्ट्रेलियाई तट पर होने वाला है. ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री, एंथनी अल्बनीस, जहाज का दौरा करने वाले पिछले सप्ताह राज्य के पहले प्रमुख बने. ये देश भी क्वाड का हिस्सा हैं. क्वाड नेताओं के शिखर सम्मेलन की मेजबानी भी इस वर्ष ऑस्ट्रेलिया द्वारा की जाएगी. हर्के ने कहा कि एक मजबूत अर्थव्यवस्था के लिए एक मजबूत नौसेना अनिवार्य है. विक्रांत उस सपने को पूरा करेगा, हमारा अगला लक्ष्य पूरी युद्ध क्षमता हासिल करना है ताकि हम एक विश्वसनीय और युद्ध-सक्षम मंच बन सकें. उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और अन्य के साथ आपसी रसद समझौतों पर हस्ताक्षर करने से भी युद्धपोत को मदद मिलेगी.

भारतीय नौसेना ने कई देशों जैसे अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया और अन्य के साथ आपसी रसद समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं. इसलिए हमारे जहाज और विमान अब अपनी सुविधाओं का उपयोग कर सकते हैं. भारतीय नौसेना भी विदेशी नौसेनाओं के साथ द्विपक्षीय और बहुपक्षीय संयुक्त अभ्यास कर रही है. इस साल पहली बार ऑस्ट्रेलिया मालाबार नौसेना अभ्यास की मेजबानी करेगा. उन्होंने यह भी कहा कि इस तरह के युद्धपोतों की न केवल सुरक्षा के लिए बल्कि बिना किसी खतरे के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को जारी रखने में “नीली अर्थव्यवस्था” की सुरक्षा बनाए रखने के लिए भी आवश्यक है. 1950 के दशक के दौरान कम से कम तीन विमान वाहक विकसित करने का प्रस्ताव दिया गया था. आने वाले वर्षों में इस तरह के पोत की और अधिक आवश्यकता होगी और यह महत्वपूर्ण होगा कि हम अपना खुद का वाहक इस तरह बनाएं.

भारतीय नौसेना ने 1961 में विमान वाहक पोत का संचालन शुरू किया. पहले वाहक को ‘विक्रांत’ के नाम से जाना जाता था जिसे यूके से खरीदा गया था. विक्रांत 1997 में सेवानिवृत्त हो गया था. इसके बाद एक और ब्रिटिश निर्मित वाहक आईएनएस विराट को नौसेना में शामिल किया गया. साल 2017 में डीकमीशन होने से पहले तीन दशकों तक अंत में, 2002 में एक पूर्ण वाहक के डिजाइन को सरकार द्वारा अनुमोदित किया गया था. जहाज की नींव 2009 में रखी गई थी, जहाज को 12 अगस्त, 2013 को लॉन्च किया गया था और इसे ‘विक्रांत’ नाम दिया गया था.

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