सोनभद्र: 3 महीने में 20 शादियां… आखिर आदिवासी जिले में क्यों बढ़ रहा बाल विवाह? | number of child marriage increased in tribal district sonbhadra know reason for this stwk


सांकेतिक फोटो
उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में बाल विवाह के मामले तेजी से सामने आ रहे हैं. यहां लोग अपनी बेटियों की शादी नाबालिक अवस्था में ही कर देते हैं, जबकि बाल विवाह समाज के लिए एक कुप्रथा है. ऐसा वह कोई दबाव में नहीं करते. ऐसा वह मजबूरी वश करते हैं. अप्रैल 2024 से अब तक 20 ऐसे शादियों को जिला बाल संरक्षण इकाई की टीम ने पहुंचकर रुकवाई है.
सोनभद्र जिला एक आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र है और यहां आज भी बाल विवाह कुप्रथा जिंदा है. यहां के लोग अपनी बहन-बेटियों की शादी कम उम्र में ही करवा देते हैं. ऐसा वह किसी दबाव में नहीं करते हैं, बल्कि वह समाज की बदनामी से बचने के लिए करते हैं. पिछले कुछ समय से देखा जा रहा है. आदिवासी समाज में 15 साल से 17 साल के आसपास की लड़कियों के भागने की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं, जिससे समाज की बेइज्जती हो रही है. इन्हीं बदनामी से बचने के लिए लोग कम उम्र में ही लड़कियों की शादी कर दे रहे हैं.
2023 में बाल विवाह के आए 38 मामले
बाल विवाह मामले बढ़ने में जागरूकता और शिक्षा की कमी होना मुख्य कारणों में से एक है. जनपद में ज्यादातर आदिवासी समाज के लोग हैं. इस समाज में जागरूकता और शिक्षा के प्रचार-प्रसार की काफी कमी है. दुद्धी क्षेत्र के एक निवासी का कहना है कि उसकी बहन का एक युवक से प्यार करने लगी थी. इसलिए हम लोग शादी करा रहे थे, लेकिन सूचना पर पहुंची बाल संरक्षण टीम ने न सिर्फ शादी को रुकवाया, बल्कि नाबालिग लड़की को नारी निकेतन में भेज दिया. 2021 में विभाग के पास बाल विवाह के सात मामले आए थे. वहीं 2022 में 15 मामले आए थे. 2023 में यह आंकड़ा 38 हो गया था.
बाल संरक्षण के अध्यक्ष ने क्या कहा?
बाल विवाह के मामले आने पर टीम के द्वारा रुकवाया गया था. बाद में टीम के द्वारा परिवार की काउंसलिंग करके नाबालिग बच्चों को परिवार को सौंप दिया गया. बाल संरक्षण इकाई के अध्यक्ष अमित चंदेल बताते हैं कि बाल विवाह सामाजिक और कानूनी अपराध है. स्पॉन्सरशिप योजना के तहत बाल विवाह से मुक्त कराए गए लड़के-लड़कियों के लिए 4000 रुपए प्रतिमाह की मदद सरकार के द्वारा की जाती है. अमित चंदेल बताते हैं कि बाल विवाह की जानकारी मिलने पर लड़कियों का रेस्क्यू किया जाता है. रेस्क्यू की गई लड़कियों को बालिका गृह भेज दिया जाता है. जांच-पड़ताल पूरी होने के बाद लड़कियों को परिवार को सौंप दिया जाता है.